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गुरुवार, 11 जून 2009

राहुल नहीं, वरुण गाँधी ने जिताया है कांग्रेस को


आज भारतीय राजनीति में राहुल गाँधी के तिलिस्म को प्रमाणिकता प्रदान करने के लिए कांग्रेस के बड़े बड़े रणनीतिकार ही नही बल्कि देश का बुद्धिजीवी वर्ग और मीडिया, सभी यूपीए की जीत का श्रेय राहुल गाँधी को दे रहे हैं। किंतु ये लोग कांग्रेस को मिली आशातीत सफलता के मूल कारण तक नही पहुँच पा रहे हैं या फ़िर वे जानते हुए भी सही बात न कहकर राहुल की चमचागिरी करने के लिए ही उनके नाम और काम को जीत का कारण बता रहे हैं। सच तो यह है कि जो कांग्रेस मुस्लिम वोटों के एक तरफा ध्रुवीकरण के कारण दोबारा सत्ता में आयी है वह कांग्रेस शायद ग़लतफ़हमी में है। मुसलमानों ने कांग्रेस की नीतियों और उसके द्वारा किए गए कार्यों से खुश होकर नही बल्कि अतिवादी भाजपा को निपटाने के लिए मजबूरी वश कांग्रेस को वोट दिया। हालाँकि मुसलमानों का वोट सपा,बसपा और अन्य दलों में बँटने जा रहा था किंतु वरुण गाँधी के सांप्रदायिक भाषणों से जो उन्मादी स्थिति उत्पन्न हुई उससे भारतीय मुस्लमान एकजुट हो गए। अब सोचिये जब 25 करोड़ लोग यानि एक-चौथाई देश एकजुट हो जाएगा तो कुछ तो गुल खिलेगा ही। पर भाजपा ने वरुण को रातों रात हीरो मान लिया या यू कहे कि भूलवश वरुण को सत्ता दिलाऊ व्यक्तित्व समझकर लोक सभा चुनाओं में स्टार प्रचारक बना दिया तो स्थिति बद से बदतर हो गई । वरुण ने सैकडों चुनावी जन सभाओं में भी सांप्रदायिक जहर उगलना जारी रखा और भाजपा ग़लत फहमी में रही कि राम मन्दिर मुद्दे कि तरह वरुण मसला भी हिन्दू मतों को एकजुट करेगा । परिणाम उल्टा ही रहा। हिंदू तो एकजुट नही हुआ पर मुस्लिम समाज जरूर एकजुट हो गया। यदि वरुण मामला न घटित होता तो इस बार मुस्लिम वोट सबसे अधिक विखराव की स्थिति में था । जिनमे से सपा, बसपा, रालोद, राजद, लोजपा और अन्य दर्जनों पार्टियों में जो मुस्लित-मत बिभाजित होने जा रहा था वो यह सोचकर कांग्रेस के पाले में चला गया कि कही चुनाव बाद ये छोटे दल भाजपा को सत्ता दिलाने में सहयोगी न बन जायें। इसलिए अपने पसंदीदा छोटे दलों को भी नकारकर वे कांग्रेस के साथ होने का मन बना चुके थे ,उनकी इस मंशा पर एन वक्त पर उलेमाओ की इस अपील ने भी अन्तिम मोहर लगा दी कि सारे मुसलमान कांग्रेस पार्टी को ही वोट दे। इसलिए कांग्रेस को इतनी सीटें मिलगई जितनी कि स्वयं कांग्रेस भी मान कर नही चल रही थी । उक्त तथ्यों को आधार मानकर यही कहा जा सकता है कि इस जीत के पीछे उनके युवराज राहुल गाँधी नही बल्कि भाजपा के तथाकथित हीरो वरुण गाँधी हैं. एक बात तो है, दिमाग बहुत है गाँधी परिवार के लोगो में । एक ऑर वरुण ने यह नाटक करके अपनी और अपनी माँ मेनका की सीट जिता ली ,दूसरी और अपनी ताई सोनिया जी की मुश्किलें आसान करदी। आज देश का एक तबका तो शायद यह भी सोच रहा होगा कि कही यह "गाँधी -बंधुओं" की मिली भगत तो नही ?

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