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बुधवार, 17 जून 2009

गरीब की झोपडी को राजनीतिक प्रयोगशाला बनाने पर उतारू है राहुल गाँधी

बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक संजय पाण्डेय ने राहुल गाँधी के जन्म दिन पर दलितों के साथ कांग्रेसियों के सहभोज(साथ बैठकर भोजन ) को "गरीब दलितों की भावनाओं पर डकैती" करार दिया। पाण्डेय ने कहा कि समाज में गरीब ही सबसे भावुक होता है ,इसलिए उसकी भावनाओं से खिलवाड़ करना आसान समझकर "राहुल गाँधी एंड कंपनी" गरीब दलितों के घरों को अपनी राजनीतिक प्रयोगशाला के लिए बेहद सस्ती ज़मीन समझ रहे हैं। गरीब के घर कांग्रेसियों के भोजन करने मात्र से उन्हें बराबरी का दर्जा नही मिल जाएगा , बल्कि उन्हें आर्थिक रूप से बराबरी प्रदान करनी होगी । नौटंकी करने के बजाए उनकी बदहाली दूर करने की योजनाये बनानी होगी । सच तो यह है कि आधी सदी तक के शासन में कांग्रेस ने गरीबी उन्मूलन और दलित उत्थान की दिशा में जो प्रयास किए वे ऊंट के मुह में जीरा की तरह हैं। दरअसल "कोट-पेंट और सूटकेश संस्कृति " वाली कांग्रेस पार्टी में योजनाकारों की भूमिका में सदैव राजा-महाराजा और किताबी अर्थशास्त्री ही रहे हैं, जो न तो गरीबी से परिचित है और न ही गरीब से।ठीक उसी तरह बसपा ने भी स्वयं को दलितों और गरीबों की रहनुमा बताकर उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया ।उनका थोक वोट बैंक तो लिया पर उनका उत्थान नही चाहा। और तो और घोषित रूप से दलितों की पार्टी (बसपा) का टिकट भी हर चुनाव में ऐसे अमीरों को दिया जाता है जो बहन जी पर करोडो रूपए न्योछावर कर दे। कुल मिलाकर इस देश में दलितों के हितैषी दिखने के लिए स्वांग रचने की स्पर्धा तो चलती है पर उनको ऊपर उठाना कोई नही चाहता। असल में भारत की राजनीति में "गरीब" ही सदैव से राजनीतिक सामग्री रहा है । शायद इसलिए कोई नेता नही चाहता कि गरीबी हटे क्योंकि यदि गरीबी हट गयी तो राजनीति की विषय-वस्तु ही खत्म हो जायेगी ।
पिछले वर्ष बुंदेलखंड के दौरे पर आए राहुल गाँधी ने एक दलित परिवार के घर खाना खाकर जाताना चाहा कि वे और उनकी पार्टी ही निम्नवर्ग के सबसे बड़े हितैषी है । किंतु मै राहुल से पूछता हूँ कि बुन्देलखंड क्षेत्र से लाखो लोग पलायन करके उसी दिल्ली में नारकीय जीवन जी रहे है जहाँ राहुल गाँधी स्थाई रूप से रहते हैं, क्या उन लोगों की सुध लेने कभी किसी झुग्गी पर राहुल गाँधी पहुचे?क्या इन्ही मजदूरों में से किसी को दस जनपथ ले जाकर साथ में भोजन करवाया? इतना तो बहुत दूर की बात, किसी मजदूर की औकात तक नही कि वह दस जनपथ में प्रवेश भी पा जाए। मीडिया की उपस्थिति में दलित के घर बैठकर और बड़ी बड़ी फोटो खिचवाकर नेताओ का तो भला हो सकता है मगर गरीब का नही। राहुल गाँधी "शबरी " के घर भोजन करके "राम" तो बनना चाहते है पर सिर्फ़ मीडिया कवरेज के लिए । पर नयी पीढी के नेताओं को नौटंकियाँ छोड़कर निष्कपट भाव से दबे-कुचलों को साथ लेकर राम के आदर्शों पर चलकर वास्तव में राम -राज स्थापित करने की पहल करनी होगी । साथ ही देश के गरीब ,दलितों को भी मायावती और राहुल गाँधी जैसे छद्म वेशधारी नौटंकीबाज कलाकारों की हकीकत जाननी होगी ।

1 टिप्पणी:

ananddwivedi press reporter ने कहा…

adhunik gandhio ke liye garibi satta pane ki sidhi bani rahi.rahul garib ki roti kha sakte h kya uski beti 10janpath m la sakte h.dhanpashu k liye garib mahej simpethi dikhakar vahvahi lutane ka sadhan h .dhara ke opposite baat kahna Sanjay ke hi bus ki baat h.

 
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