चिट्ठाजगत

सोमवार, 22 दिसंबर 2008

बुंदेलखण्ड : गावों में बुजुर्ग और महिलाएं ही शेष

महोबा. पिछले पॉँच वर्षों से भीषण सूखे की चपेट में रहे बुन्देलखंड क्षेत्र में इस बार औसत वर्षा होने से सूखा से तो निजात मिली किन्तु लोगो का आर्थिक संकट अभी तक दूर नहीं हो सका . पिछले वर्षों के अकाल ने बुंदेलखंड क्षेत्र की अर्थ व्यवस्था को पूरी तरह बर्बाद कर दिया था,लोग दाने-दाने को मोहताज़ हो गए थे ,लोग और उनके मवेशी बूँद -बूँद पानी के लिए तरसने को मजबूर थे ,खेतों में एक-एक मीटर गहरीं दरारें पद गयीं थीं .किन्तु इस वर्ष अच्छी बारिश हो जाने से बुन्देलखण्ड के लोगो को मनो जान ही मिल गयी थी.परन्तु खरीफ की फसल अति वर्षा की भेंट चढ़ गयी और रबी की फसल के लिए खाद-बीज के लिए पैसे न होने केचलते लोग मन मसोस कर रह गए. इतना ही नहीं पानी बरस जाने से बाद से वे सारी सरकारी सहायतायें भी बंद कर दीं गयीं थीं जो सूखे दौरान क्षेत्र के लोगो को मिल रहीं थीं.
कुछ लोगो ने पुनः क़र्ज़ काढ कर खाद, बीज का जुगाड़ तो कर लिया और बुबाई भी कर दी,किन्तु फसल आने में तो अभी तीन महीने शेष हैं,पेट की भी चिंता है, साहूकारों का क़र्ज़ भी उतारना है इसलिए लोग मजबूर होकर मजदूरी की खातिर महानगरों के लिए पलायन कर रहे हैं. रोज़ हजारों युवक दिल्ली मुम्बई के लिए प्रस्थान कर रहे हैं,फलस्वरूप यहाँ के गावों में बुजुर्ग और महिलाएं ही शेष रह गए है, गाँव के गाँव खाली हो गये हैं.बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक संजय पाण्डेय के अनुसार बुंदेलखंड की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लौटने में अभी वक्त लगेगा ,इसलिए यहाँ के लोगों को जो सरकारी सहायताये सूखे के दौरान दी जाती थीं वे अभी बंद नहीं की जानी चाहिए, इतना ही नहीं बल्कि खाद,बीज,सिंचाई,लगान आदि में भी राहत की पेशकश सरकारों की तरफ से की जानी चाहिए.

1 टिप्पणी:

रचना गौड़ ’भारती’ ने कहा…

भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
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